मन कभी बूढ़ा नहीं होता तन बूढ़ा होता है , मन तो हमेशा यही कहता है-
चुराके तितलियों से रंग,फूलों से गंध
नाचूं बगिया में भंवरों के संग|
चुराके बादलों से नमी, हवा से मस्ती,
नाचूं सागर पे लहरों के संग|
चुराके चाँद से चांदनी ,रात से अँधेरा,
नाचूं नभ में तारों के संग|
चुराके कोयल से मिठास,
रचके खुशियों के गीत,
छेड़ूं मीठी मीठी तान सबके संग|