Reena’s Exploration Challenge #64
घर वापसी
मन कभी वहां था ही नहीं जहाँ इसे होना चाहिए था
शरीर के अंदर रह कर उसे सही राह दिखाना और हुए मंज़िल की ओर ले जाना
पर नहीं उसे तो हर सवाल का जवाब चाहिए था
प्रकृति के सारे रहस्य उसे जानना था
उसी खोज में न जाने कहाँ कहाँ भटका कितनी जगहों की खाक़ छानी
पर कुछ मिला क्या
वही कुत्ते की तरह अपनी ही दुम के पीछे भागने के सिवाय
कुछ भी हासिल हुआ क्या
सब कुछ यहीं था
आँखों के सामने
अपने सम्पूर्ण सौंदर्य में
छिपता, दिखाता , ढंकता, उभरता
ललकारता
पा सको तो पालो मुझको
मैं तो यही हूँ तुम्हारे भीतर
बस पारखी नज़र होनी चाहिए
मुझसे ही चूक हो गयी
” जिन खोजा तिन पाइयाँ , गहरे पानी पैठ,
मैं बैरन ऐसी डरी , रही किनारे बैठ। ”
और अब ,
हर सुबह पूछती है,आज नया करने को कुछ है क्या?
हर रात पूछती है,आज क्या किया,
मन है की भटकाता रहता है
- nomadic heart!